रविवार, दिसंबर 14, 2008

दारुल-हर्ब से दारुल-इस्लाम बनाने के उस्ताद


जमात-उद-दावा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंध से साफ है कि दुनिया ने भारत के इस तर्क पर अपनी मुहर लगा दी है कि इस संगठन और लश्कर-ए-तय्यबा की जड़ एक ही है। इससे पहले इन आतंकियों सहित जमात-उद-दावा को आंतकवादी संगठनों की सूची में शामिल कराने की तीन बार कोशिश की गई, लेकिन चीन ने विरोध किया था। अहम बात यह है कि इस बार भारत और अमेरिका ने इस संगठन के खिलाफ जो ठोस सबूत पेश किए उसके बाद चीन को अपना तेवर और रणनीति दोनों बदलने को मजबूर होना पड़ा। पाकिस्तान सरकार इन संगठनों पर कार्रवाई के मामले में अब तक कैसी और कितनी गंभीरता बरतती रही है, इसका पता इस बात से लग जाता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंध लगाए जाने के बाद जमात-उद-दावा के प्रमुख ने इसे पाकिस्तान को बदनाम करने की साजिश बताकर अपनी गतिविधियां पूर्ववत जारी रखने का ऐलान किया। गौरतलब है कि इससे पहले भी पाकिस्तान में आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध की नूरा-कुश्ती की वजह से थोड़े समय के बाद ही उनके नेता नजरबंद से बाहर आ जाते रहे हैं और प्रतिबंध बिल्कुल अर्थहीन हो जाता है। क्योंकि अनुभव बताता है कि कंधार विमान अपहरण और भारतीय संसद पर हमले के बाद पाकिस्तानी हुकूमत ने çदखावटी कारüवाई करके अंतरराष्ट्रीय जगत में अपनी साख बचाई थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पाबंदियों के बाद इन लोगों और संगठनों पर जो पाबंदियां लागू होंगी उनमें यात्रा करने पर पाबंदी, वित्तीय मदद इकट्ठा करने पर रोक, संपçत्तयों की कुर्की जैसे प्रावधान हैं। मगर इसमें पेच यह है कि प्रतिबंधों और पाकिस्तान सरकार की सख्ती के बाद इस तरह के संगठन नाम और जगह बदलकर फिर अपनी गतिविधियां शुरू कर देते हैं, जिससे थोड़े समय के लिए मामला ठंडा पड़ जाता है। जमात-उद-दावा लगातार दावा कर रहा है कि उसका संगठन लश्कर-ए-तय्यबा से अलग है और यह बात बात पाकिस्तान में न्यायालय भी मान चुका है। पाकिस्तान सरकार भले आतंकी संगठनों की इन दलीलों को मान ले, लेकिन दुनिया अब यह मानने को तैयार नहीं है। अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने कहा है कि मुंबई हमलों के बाद हालात बेहद खतरनाक हैं और पाकिस्तान को कड़े कदम उठाने की जरूरत है। यह सच है कि इस पूरे मामले में बुश प्रशासन की सक्रियता के कारण भी अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत के पक्षों और तथ्यों को गंभीरता से लिया गया। प्रतिबंधों के बाद अब जरूरत इस बात की है कि वहां आतंकियों को प्रशिक्षित करने के लिए जो शिविर चलाए जाते हैं और चैरिटी के नाम पर मदरसों में पूरी दुनिया को दारुल-हर्ब से दारुल-इस्लाम बनाने जो शिक्षा दी जाती है उसको असलियत में रोकने की कार्रवाई की जाए।

3 टिप्‍पणियां:

युग-विमर्श ने कहा…

प्रिय पाराशर जी
मैं आपसे अक्षरशः सहमत हूँ. वहाबी आन्दोलन के साथ-साथ इस्लामी हुकूमत की जो परिकल्पना की गई वह अपने बीज रूप में ही बहुत खतरनाक थी. इन लोगों का मानना है कि नाबिश्री हज़रत मुहम्मद विश्व में इस्लामी सल्तनत स्थापित करने का संदेश छोड़ गए हैं इसलिए इनका यह कृत्य जिहाद है. डेकन मुजाहिदीन के छद्म नाम से मीडिया को भेजी गई चिट्ठी जिसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया गया, वास्तव में इसी तथ्य का संकेत करती है. उस चिट्ठी में अबूबकर [र.], उमर [र.] उस्मान [र.] और खालिद बिन वलीद को अपने मिशन का आदर्श बताया गया है. आतंक के बीज बिन्दु इस्लामी साम्राज्य-विस्तार की उन्हीं इच्छाओं में हैं जिन्हें आतंकवादी और कट्टर मुसलमान इन सम्मानित महानुभावों की बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं. यह लोग हज़रत मुहम्मद [स.] को अपना आदर्श कभी स्वीकार नहीं करते. मुशर्रफ़ ने जब इस्लामी आतंकवाद के पत्तों के बजाय मूल को काटने की बात की थी तो उनका संकेत संभवतः दबी भाषा में इन्हीं आस्थाओं की ओर था. भारत में भी अधिकाँश वहाबी या देवबंदी मुसलमान इसी आस्था के हैं यह वाही मुसलमान हैं जो दरगाहों पर जाने, मुहर्रम के ताजियों में शरीक होने, मृत्यु पर तीजा और चालीसवां किए जाने, शबरात पर और शादी-ब्याह में आतिशबाजी छुडाने आदि को काफिरों का कार्य बताते हैं और इन कृत्यों में हिन्दू प्रभाव देखते हैं.

Unknown ने कहा…

भारत ने हर हमेशा सभी विचारधाराओ को अपनाया है। अपने मुल स्थान से विलुप्त होने के बावजुद कैयन विचारधाराओ के अवशेष भारत मे दिख पडते है। इस्लाम यदि सर्वसत्तावादी शासण व्यवस्था लादने की कोशीस करेगा तो खुद मिट जाएगा। भारत के मुस्लीमो को आगे आना होगा तथा भारतीय परम्पराओ के अनुरुप अन्य धार्मिक जीवन पद्धति के सहअस्तित्व को खुल कर स्वीकार कारना होगा। और यह समझना होगा की भारत के हिन्दु और मुस्लामान के पुर्वज एक ही थे, भारत-पाकिस्तान के अलग0अलग अस्तित्व को भी नकाराना होगा। यही सास्वत समाधान है।

drdhabhai ने कहा…

भारत के मुस्लीमो को आगे आना होगा .....वो न आये थे और न आने वाले....इन बच्चों जैसी बातों ने समाज को कमजोर ही किया हैं....इसलिए कुछ ठोस करने का सोचें